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धर्म और कर्म, कौन पहुंचाएगा अनंत तक............

  कुछ लोग धर्म को सब कुछ मानते हैं, कुछ कर्म करने में यकीं रखते हैं। धर्म यानी जिम्मेदारी, कर्म यानी जो हम कर रहे हैं। धर्म और कर्म दोनों में कहीं भी नफरत जैसे लफ्ज का वजूद नहीं है। जिम्मेदारी सिर्फ परिवार की ही नहीं, इस समाज, आबो-हवा और कुदरत की हर रचना के लिए हैं। ये जिम्मेदारी इंसान को उसके मजहब से, उसके समाज, उसके देश से मिलती है। आज के वक्त में लोग इन जिम्मेदारियों को बंधन समझते हैं, और इसे आजादी के खिलाफ समझते हैं। पुराने वक्त में लोग कम थे लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, उसके लिए नियम कानून में फेर-बदल हुए। इस बढ़ती हुई आबादी को ये सीखना चाहिए कि जो नियम ये दुनिया शुरू होने के वक्त थे, वे नियम आज के वक्त में लागू नहीं हो सकते। जिम्मेदारी कोई बोझ नहीं, अगर आप अपने माता-पिता का ख्याल रखेंगे तो आपके बच्चे भी यही सीखेंगे और आपका ख्याल रखेंगे। पानी और हवा को दूषित होने से बचाएंगे तो आने वाली पीढ़ी के जीने के लिए आसानी होगी। ये जिम्मेदारियां कोई बंधन नहीं है, यह सिर्फ रूह और वजूद को बेहतर तरीके से जीने में मदद करती है।  कई कर्म में यकीं रखते हैं, लेकिन कर्म असलियत में क्या है? क्या कर्म वो ह